अरे वाह! ये तो अच्छा सवाल है। भारत में पहला हिंदी समाचारपत्र "उदन्त मर्तंड" था जिसे 1826 में प्रकाशित किया गया था। अब ये कैसा नाम है भाई? 'उदन्त मर्तंड', लगता है हमारे पुराने लोगों को नामकरण में कितनी सुंदरता और विचारणा थी! खैर, यह पत्रिका कालकत्ता (अब कोलकाता) में जारी हुई थी और इसका संपादन ज्ञानेंद्र मोहन दास ने किया था। अहा, हमारे इतिहास में तो खासी मसाला है, नहीं? आपको ये जानकारी कैसी लगी, अपने विचार जरूर बताएं!
2023 के अगस्त में लखनऊ हिंदी समाचार में पहला हिंदी समाचारपत्र: उदन्त मर्तंड की कहानी
नमस्ते! अगर आप हिंदी प्रेस के शुरुआती दिनों में रुचि रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए है। अगस्त 2023 के आर्काइव में सिर्फ़ एक ख़ास पोस्ट है, जिसमें भारत में पहला हिंदी समाचारपत्र — उदन्त मर्तंड — के बारे में बताया गया है। चलिए, इस रोचक तथ्य को साथ में समझते हैं और देखते हैं कि इस समाचारपत्र का आज हमारी भाषा और पत्रकारिता पर क्या असर है।
उदन्त मर्तंड कब और कहाँ शुरू हुआ?
उदन्त मर्तंड का पहला अंक 1826 में प्रकाशित हुआ था। यह पत्रिका कोलकाता (तब के नाम से कालकत्ता) में सामने आई, जहाँ अंग्रेज़ों की राजनैतिक और वाणिज्यिक गतिविधियां तीव्र थीं। उस समय हिंदी को लिखित रूप में ज़्यादा नहीं पढ़ा जाता था, लेकिन उदन्त मर्तंड ने भाषा को बढ़ाने में मदद की। आप सोच रहे होंगे, "इतना पुराना पत्रिका कैसे शुरू हुआ?" असल में, इसे ज्ञानेंद्र मोहन दास ने संपादित किया था। उनका मन था हिंदी को एक आधुनिक माध्यम बनाना, जहाँ लोगों को राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक खबरें मिल सके।
उदन्त मर्तंड की महत्त्वपूर्ण बातें
यह पत्रिकै सिर्फ़ एक समाचार स्रोत नहीं थी, बल्कि एक विचार मंच भी थी। इसमें सामाजिक सुधार, शिक्षा, और भारतीय संस्कृति से जुड़ी बातें छपेती थीं। कई लोग इसे पहली बार पढ़कर अपने भीतर जागरूकता की लहर महसूस करते थे। आज जब हम डिजिटल माध्यमों में साक्षरता की बात करते हैं, तो उदन्त मर्तंड वह बीज था जिसने हिंदी में सूचना का प्रसारण शुरू किया।
उदन्त मर्तंड की प्रमुख खूबियों में से एक थी उसकी आसान भाषा। लेखकों ने कोशिश की कि जटिल शब्दों को हटाकर आम जनता तक बात पहुंचे। यही कारण है कि आज भी इस पत्रिका को पढ़कर लोग इसे समझ पाते हैं, भले ही यह दो सदी पुराना हो। आप भी अगर कभी इस पत्रिका की डिजिटल कॉपी देखें, तो अपने आप को इतिहास की धड़कन के साथ जुड़ा महसूस करेंगे।
अब सवाल यही है—क्या आज के हिंदी समाचारपत्रों में भी वही सादगी और सामाजिक दायित्व है? लखनऊ हिंदी समाचार इस बात को याद दिलाता है कि भाषा को सरल और उपयोगी बनाना हमेशा फायदेमंद रहा है। हमारी वेबसाइट पर आप रोज़ नई खबरें पढ़ सकते हैं, लेकिन कभी-कभी पुराने इतिहास की झलक भी देखी जा सकती है, जैसे इस पोस्ट में।
अंत में, अगर आप इतिहास में रुचि रखते हैं, तो उदन्त मर्तंड के बारे में और पढ़ें, या अपने मित्रों को बताएं। छोटे‑छोटे प्रश्न पूछना—जैसे "पहला हिंदी समाचारपत्र कब आया?"—ये हमें इतिहास से जोड़ता है। लखनऊ हिंदी समाचार में इस तरह की रोचक जानकारी अक्सर मिलती है, तो आने वाले महीनों में भी देखते रहें।
तो, अगला बार जब आप समाचार पढ़ें, तो याद रखिए कि यह लम्बी इतिहास की एक धारा है, जिसमें उदन्त मर्तंड ने पहला कदम रखा था। यही है हमारी भाषा की शक्ति—सरल, सच्ची, और हमेशा आगे बढ़ती।