Prayagraj High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट को देश ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट के तौर पर जाना जाता है. यहां आने वाले फैसले अक्सर नज़ीर बनते हैं. यहां से आने वाले फैसलों की चर्चा यूपी के साथ ही पूरे देश में होती है. हालांकि साल 2021 में कोरोना की महामारी का असर इलाहाबाद हाईकोर्ट पर भी खूब पड़ा. लम्बे अरसे तक हाईकोर्ट पूरी तरह बंद रहा. काफी दिन यहां ई फाइलिंग के ज़रिये मुक़दमे दाख़िल किये गए. वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये मुकदमों की सुनवाई की गई. इन सबके बावजूद साल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई बड़े मामलों में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट ने कई ऐसे फैसले दिए, जिन पर काफी दिनों तक चर्चा हुई. साल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में किन प्रमुख मामलों में मुक़दमे दाखिल किये गए. अदालत ने पूरे साल में कौन से ऐसे 21 अहम फैसले सुनाए, जो पूरे देश में चर्चा का सबब बने रहे. साल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट से आए 21 प्रमुख मुकदमों के बारे में जानें.
यूपी में इन दिनों विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी सरगर्मी शबाब पर है, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट से 23 दिसम्बर को आए एक अहम फैसले से इस चुनाव पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. हाईकोर्ट ने जमानत के एक मामले में फैसला सुनाते हुए प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग से कोरोना के मद्देनज़र चुनाव को कुछ महीनों के लिए टालने का अनुरोध किया. जस्टिस शेखर यादव की बेंच ने हिन्दी में दिए गए अपने फैसले में कहा है कि कोरोना और ओमिक्रोन से लोगों को बचाने के लिए चुनाव को कुछ दिनों के लिए टाल देना चाहिए. अदालत ने इसके साथ ही चुनाव में वोटरों को लुभाने के लिए हो रही रैलियों – जनसभाओं व भीड़ भाड़ वाले दूसरे सार्वजनिक कार्यक्रमों पर पाबंदी लगाए जाने का भी सुझाव दिया है. अदालत ने अपने फैसले में साफ़ कहा है कि ज़िम्मेदार लोगों को जान है तो जहान है के फार्मूले पर काम करना चाहिए. हालांकि तकरीबन एक हफ्ते का वक़्त बीतने के बावजूद सरकार और चुनाव आयोग ने अभी इस तक इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया है.
2. यूपी में इस साल अप्रैल और मई महीने में त्रिस्तरीय पंचायत हुए. इन चुनावों में लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. पंचायतों के यह चुनाव चार फरवरी को सुनाए गए हाईकोर्ट के अहम फैसले की वजह से ही हुए. अदालत ने इस बारे में यूपी सरकार और निर्वाचन आयोग को तीस अप्रैल तक चुनाव कराने के आदेश दिए थे. अदालत ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार कोरोना की आड़ में पंचायत चुनावों को अभी और टालना चाहती है. काउंटिंग के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराने और सुरक्षा के मद्देनज़र काउंटिंग सेंटर्स पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने के बारे में अदालत ने आदेश दिए थे. काउंटिंग में कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं होने पर भी अदालत ने सख्त नाराज़गी जताई थी.
3. साल 2021 में पूरे बारहों महीने कोरोना की दहशत रही. इलाहाबाद हाईकोर्ट का कामकाज भी ख़ासा प्रभावित हुआ. महीनों कोर्ट बंद रही. हालांकि हाईकोर्ट ने पूरे साल कोरोना से जुड़े मामलों की मानीटरिंग की. सरकारी मशीनरी को ज़रूरी हिदायतें दीं. हाईकोर्ट के दखल के चलते यूपी में कोरोना को लेकर हालात पूरी तरह बेकाबू नहीं हुए. सरकारी अमला लगातार सक्रिय बना रहा. कहा जा सकता है कि हाईकोर्ट ने महामारी के मुश्किल वक़्त में फ़रिश्ते जैसा काम किया और मुकदमों में फैसले सुनाने के साथ ही अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी को भी निभाया. हालांकि हाईकोर्ट के कई दिशा निर्देश योगी सरकार के लिए मुसीबत का सबब भी बने रहे.
4. कोविड मामलों की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के सरकारी इंतजामों को नाकाफी बताते हुए अपनी नाराज़गी जताई थी और कहा था कि सूबे में लोगों के जीवन को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि लोग कोरोना से बुरी तरह डरे हुए हैं. हर तरफ इस महामारी का भूत मार्च कर रहा है, लेकिन लोगों को इलाज व बचाव की सभी सुविधाएं मुहैया कराने के बजाय उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. लोगों का जीवन भाग्य के भरोसे हो गया है. अस्पतालों में लोगों का इलाज नहीं हो पा रहा है. आज़ादी के सात दशक बीतने के बावजूद लोगों को उनका जीवन बचाने के लिए आक्सीजन न मिल पाना बेहद शर्मनाक है. हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से सरकार की काफी फ़ज़ीहत हुई, लेकिन तमाम लोगों की ज़िंदगी बच गई.
5. समाजवादी पार्टी के सांसद मोहम्मद आज़म खान को पूरे साल इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली. आज़म के ड्रीम प्रोजेक्ट जौहर युनिवर्सिटी की ज़मीन के मामले में रामपुर के सांसद को बड़ा झटका लगा. हाईकोर्ट ने रामपुर के एडीएम के फैसले पर मुहर लगाते हुए आज़म और उनके ट्रस्ट को कोई राहत नहीं दी. आज़म खान के ट्रस्ट ने इस फैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में स्पेशल अपील दाखिल की, जिस पर अभी फैसला नहीं आया है. ज़मानत के मामले में भी आज़म खान को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल हुए बिकरू कांड से भी जुड़े कई मुक़दमे
6. कानपुर के चर्चित बिकरू कांड से भी जुड़े कई मुक़दमे साल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल हुए. मुठभेड़ में मारे गए अमर दुबे की नाबालिग पत्नी खुशी दुबे को कोई राहत नहीं मिली और उसकी जमानत की अर्जी खारिज हो गई. इतना ही नहीं अदालत ने खुशी दुबे को बिकरू कांड में मौत के घाट उतारे गए सात पुलिसकर्मियों की हत्या के लिए भी खुशी दुबे को ज़िम्मेदार माना. बिकरू कांड के सबसे बड़े विलेन विकास दुबे की पत्नी ऋचा दुबे को भी फर्जी सिमकार्ड मामले में राहत नहीं मिली. खुशी दुबे की जमानत अर्जी सत्रह जुलाई को खारिज हुई थी.
7. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने गायों की हालत और गौ हत्या की बढ़ती घटनाओं को लेकर बेहद अहम फैसला सुनाते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किये जाने का सुझाव देते हुए केंद्र सरकार से इस बारे में संसद में बिल पेश करने को कहा. कोर्ट ने इस बारे में कहा था कि गायों की सुरक्षा को हिन्दुओं के मौलिक अधिकार में शामिल किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट के मुताबिक़ गायों को किसी एक धर्म के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. यह भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है. अपनी संस्कृति को बचाना हर भारतवासी की ज़िम्मेदारी है. महज़ स्वाद पाने के लिए किसी को भी इसे मारकर खाने का अधिकार कतई नहीं दिया जा सकता.
8. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलीगढ़ में तैनात हेड कांस्टेबल जोगिंदर सिंह को भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी से जुड़े मामले में अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि आपराधिक केस दर्ज होते ही अकारण गिरफ्तारी मानवाधिकारो का खुला उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि मुकदमा दर्ज होने के बाद किसी की गिरफ्तारी का उपयोग अंतिम विकल्प व अपवाद स्वरूप किया जाना चाहिए. गिरफ्तारी करना जरूरी हो तभी इस शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने याची पर लगे आरोप, अपराध की प्रकृति तथा कोरोना संक्रमण की बढती दूसरी लहर एवं तीसरी लहर की संम्भावना पर विचार कर याची की अग्रिम जमानत की अर्जी को सशर्त मंजूर कर लिया.
9. धर्म विशेष का प्रचार -प्रसार करने और धार्मिक शिक्षा देने वाले मदरसों को सरकारी मदद मुहैया कराए जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी साल 2021 में सवाल खड़े किये. हाईकोर्ट ने मदरसों को मिलने वाले सरकारी अनुदान के साथ ही यहां होने वाले भेदभाव समेत छह बिंदुओं पर सवाल उठाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब कर लिया. अदालत ने यूपी सरकार से यह बताने को कहा कि धर्म विशेष की शिक्षा देने वाले मदरसों को किस क़ानून या अधिकार के तहत सरकारी मदद मुहैया कराई जा रही है. क्या सरकार को मदरसों को आर्थिक मदद मुहैया कराए जाने का कोई कानूनी अधिकार है. क्या जनता द्वारा चुनी हुई सेक्युलर सरकार किसी धर्म विशेष के केंद्र को आर्थिक मदद देकर उसे संचालित करा सकती है. अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि मुसलमानों के अलावा दूसरे अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षण संस्थानों को भी इसी तरह की आर्थिक मदद दी जाती है या नहीं. क्या मदरसों में लड़कियों के प्रवेश पर पाबंदी होती है.
10. लव जिहाद के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए यूपी सरकार पिछले साल धर्मांतरण क़ानून लाई थी. इस क़ानून को करीब आधा दर्जन याचिकाओं के ज़रिये इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने इन अर्जियों पर यूपी सरकार को नोटिस जारी कर उससे जवाब तलब कर लिया था. सरकार अदालत में अपना पक्ष रख चुकी है. अभी इस मामले में अदालत का फैसला नहीं आया है. उम्मीद जताई जा रही है कि नये साल में हाईकोर्ट अपना फैसला सुना सकती है.
11. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एटा जिले में शादी के लिए धोखे से कराए गए धर्मांतरण के मामले में फैसला सुनाते हुए अकबर और जोधाबाई के रिश्ते को नज़ीर यानी उदाहरण के तौर पर पेश किया. कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि महज़ शादी करने के लिए डर – धोखे- लालच व दबाव में किया गया धर्मांतरण कतई सही नहीं होता है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक -दूसरे के धर्म और उसकी पूजा पद्धति का सम्मान कर रिश्तों को और मजबूत किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा है कि अलग धर्म के लोगों में विवाह और रिश्तों को बेहतर तरीके से निभाने में मुग़ल बादशाह अकबर और उनकी हिन्दू पत्नी जोधा बाई की शादी से बेहतर कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता है. अदालत ने इस फैसले में कहा कि शादी के लिए पति -पत्नी का एक ही धर्म का होना कतई ज़रूरी नहीं है. दो अलग धर्मों के लोग भी विवाह कर पति -पत्नी के तौर पर रह सकते हैं.
12. साल 2021 में यूपी में शिया और सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के चुनाव हुए. हालांकि दोनों चुनावों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. अदालत ने इन चुनावों पर सरकार के साथ ही दोनों बोर्डों से भी जवाब तलब किया. अदालत में जवाब दाखिल हो चुका है, हालांकि अभी फैसला नहीं आ सका है. इसी तरह हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शिया वक़्फ़ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी उर्फ़ जितेंद्र त्यागी को नोटिस जारी कर उनसे जवाब तलब कर लिया है.
13. मैनपुरी के नवोदय विद्यालय में दो साल पहले ग्यारहवीं की छात्रा की संदिग्ध मौत के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरे साल सख्त रुख अपनाए रखा. हाईकोर्ट ने इस मामले में डीजीपी को तलब कर उन्हें दो दिनों तक प्रयागराज में ही रुकने का आदेश दिया था. अदालत ने सरकार और पुलिस महकमे को जमकर फटकार भी लगाई. हाईकोर्ट के दखल पर सरकार ने इस मामले में नई एसआईटी गठित की. सौ से ज़्यादा लोगों का डीएनए टेस्ट कराया गया. एसआईटी की जांच और मुक़दमे की सुनवाई अभी जारी है.
14. साल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई धार्मिक मामलों में भी सुनवाई हुई. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के खिलाफ दाख़िल अर्जी कोर्ट से खारिज हुई. विश्वनाथ धाम में शुरू की गई सुगम दर्शन की योजना के ख़िलाफ़ दाखिल जनहित याचिका भी खारिज हुई. वाराणसी के विशेश्वर महादेव और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की सुनवाई पूरे साल चली, लेकिन अभी सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है. इसी तरह मथुरा के श्री कृष्ण मंदिर के नजदीक मस्जिद की जगह पर पूजा और दर्शन की इजाज़त दिए जाने की मांग को लेकर दाखिल अर्जी पर सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है.
15. साल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में बॉलीवुड से जुड़े कई मामलों में भी सुनवाई हुई. मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी की फिल्म चेहरे की कहानी और कॉपीराइट के विवाद का मामला हाईकोर्ट की दहलीज तक आया. फिल्म पर पाबंदी लगाए जाने की अर्जी खारिज हो गई. हिन्दू देवी -देवताओं पर विवादित टिप्पणी वाली तांडव फ़िल्म को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया. अदालत ने साफ़ तौर पर कहा कि कला और अभिव्यक्ति के नाम पर बहुसंख्यक लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता. हालांकि फिल्म अभिनेता नवाज़उद्दीन सिद्दीकी को घरेलू विवाद मामले में राहत मिल गई.
16. साल 2021 में शादियों से जुड़े कई मामलों को लेकर सुनवाई हुई. कुशीनगर और मेरठ की रहने वाली दो मुस्लिम लडकियां लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए सुरक्षा की मांग को लेकर हाईकोर्ट आईं. हाईकोर्ट ने इसे इनका मौलिक अधिकार बताते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये जाने के आदेश दिए. अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि लिव इन रिलेशन जीवन जीने का नजरिया व हिस्सा बन गया है. इसे व्यक्तिगत स्वायत्तता के रूप में देखने की जरूरत है न कि सामाजिक नैतिकता के पैमाने पर. इसी तरह हिन्दू लड़की का धर्म बदलकर उससे निकाह करने के मामले में अदालत ने याचिकाकर्ता पति को पत्नी के नाम तीन लाख रूपये का फिक्स डिपॉजिट कराने का आदेश दिया था. यह आदेश जस्टिस सरल श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने बिजनौर के नगीना इलाके की रहने वाली संगीता उर्फ़ शाइस्ता परवीन की अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया था.
17. यूपी में पुलिस कस्टडी में हुई मौतों से जुड़े कई मामलों में भी इस साल इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने जौनपुर के चर्चित पुजारी यादव उर्फ़ कृष्णा यादव की पुलिस कस्टडी में हुई मौत के मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर नाराज़गी जताई और सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई. इसी तरह कानपुर के व्यापारी मनीष गुप्ता की गोरखपुर के होटल में पुलिस की पिटाई से मौत के मामले में भी आरोपी दरोगा को कोई राहत नहीं दी.
18. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस साल आपके अपने पसंदीदा चैनल ABP गंगा की ख़बर पर भी संज्ञान लिया और यूपी के पुलिस थानों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय बनाने के निर्देश दिए. ABP चैनल की ख़बर को आधार बनाकर ला स्टूडेंट्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी. इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने गृह विभाग से जवाब तलब किया था. सरकार ने सूबे के डेढ़ हज़ार थानों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय बनाए जाने की मंज़ूरी दी और बजट भी पास कर दिया.
19. महोबा के निलंबित एसपी और आईपीएस अफसर मणिलाल पाटीदार की कई अर्जियां इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल हुईं, लेकिन उन्हें किसी भी मामले में राहत नहीं मिल सकी. इसी तरह भदोही के बाहुबली विधायक विजय मिश्र को भी किसी मामले में राहत नहीं मिल सकी. विजय मिश्र इन दिनों आगरा की जेल में बंद हैं और उनकी मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं. हालांकि नूरपुर के चर्चित मामले में आरोपी एमआईएम नेता नाजिम अली को राहत मिल गई और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लग गई.
20. अपने प्यार की खातिर प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार के ही सात लोगों का क़त्ल करने वाली अमरोहा की शबनम की फांसी की सज़ा बदलने के मामले को लेकर हाईकोर्ट की वकील सहर नक़वी ने पहल की. इस पर सूबे की गवर्नर ने न्याय विभाग को उचित कदम उठाने के निर्देश दिए. वकील सहर नक़वी ने बरेली जेल में शबनम से मुलाक़ात को लेकर भी अर्जी दाखिल की, लेकिन हाईकोर्ट ने मंजूरी नहीं दी.
मनमानी फीस वसूली का मामला अब भी अदालत में पेंडिंग
21. कोरोना काल में साल 2021 में भी ज़्यादातर स्कूल कालेज बंद ही रहे, लेकिन स्कूलों की मनमानी फीस वसूली लगातार जारी रही. स्कूलों की फीस को लेकर हाईकोर्ट में कई अर्जियां दाख़िल हुईं. अदालत ने सरकार के साथ ही सभी प्रमुख बोर्डों से जवाब मांगा, लेकिन यह मामला अब भी अदालत में पेंडिंग ही है. अखाड़ा परिषद के दिवंगत अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत के मामले की मानीटरिंग को लेकर भी हाईकोर्ट से अपील की गई, लेकिन अदालत ने इस अपील को मंज़ूर ही नहीं किया. इस चर्चित मामले के मुख्य आरोपी आनंद गिरि की जमानत अर्जी भी अभी हाईकोर्ट में पेंडिंग है. भगवान राम और कृष्ण पर अमर्यादित टिप्पणी करने के मामले में हाईकोर्ट ने गहरी नाराज़गी जताई, लेकिन आरोपी को राहत देते हुए उसकी जमानत मंज़ूर कर दी. इसी तरह गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डा० कफील खान को कई मामलों में राहत दी. हालांकि कुछ मामलों पर अभी फैसला नहीं आ सका है.
ये भी पढे़ं-
UP Election 2022: यूपी में मतदान का समय 1 घंटा बढ़ाया गया, जानिए- चुनाव आयोग ने और क्या-क्या फैसले लिए हैं
UP Election 2022: यूपी चुनाव से पहले सपा को लगा बड़ा झटका, कांग्रेस में शामिल हुए ये नेता
.