छत्तीसगढ़ समाचार: डॉक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है। इस बात का एहसास अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टरों ने किया है. डॉक्टरों, स्टाफ की कड़ी मेहनत और बेहतर इलाज से बच्चे की जान जन्म के 41 दिन में ही बच गई। जिसके बाद अपने बच्चे की जिंदगी के लिए दुआ करने वाले नवजात के मां-बाप अब बेहद खुश हैं. उन्होंने बच्चे की जान बचाने वाले डॉक्टरों और स्टाफ की भी तारीफ की है.
बच्चे को थी यह समस्या
गौरतलब है कि जन्म के बाद कुछ दिक्कतों की वजह से नवजात शिशु सांस नहीं ले पा रहा था। और डॉक्टरों के मुताबिक ऐसी स्थिति में ज्यादातर बच्चों का जीवित रहना मुश्किल हो जाता है. हालांकि, एक महीने 11 दिन के इलाज के बाद नवजात स्वस्थ है और घर जा चुका है। सरगुजा संभाग के एकमात्र सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टरों ने यह काम किया है. जिसे आमतौर पर चिकित्सा जगत में मुश्किल तो माना जाता है लेकिन नामुमकिन नहीं। इतना मुश्किल काम डॉक्टरों के इलाज और स्टाफ की सेवा से संभव हुआ है.
जानकारी के अनुसार सूरजपुर जिले के कल्याणपुर के निकट अखोराकला गांव निवासी विकेश कुमार ने अपनी पत्नी सबिता चक्रधारी को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया था. जहां 11 दिसंबर को सविता ने बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म के बाद से ही उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। इसलिए 12 दिसंबर को बच्चों को क्रिटिकल केयर के लिए एसएनसीयू में रखना पड़ा। दरअसल, मां के पेट में सांस लेते हुए बच्चे ने गंदा पानी पी लिया। जिससे उन्हें सबसे घातक प्रकार का निमोनिया हो गया। इतना ही नहीं उनकी सांस नली में भी संकुचन आ गया था। ऐसे में ज्यादातर बच्चे तीन से चार दिन ही जीवित रह पाते हैं।
डॉक्टरों का क्या कहना है
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग की प्रमुख डॉ सुमन के मुताबिक, बच्चे ने मां के पेट में सांस लेते हुए मल रहित पानी पिया था. डॉक्टर के मुताबिक जब बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हुई तो उसे पहले बिना देर किए एसएनसीयू (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में रखा गया। 41 दिनों के अंतराल में बच्चे की तबीयत बेहद नाजुक होती जा रही थी। उस दौरान नवजात को तीन बार वेंटिलेटर में रखना पड़ा। सुमन के मुताबिक गंदा पानी पीने से बच्चे को म्यूकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम हो गया था। जो एक प्रकार का क्रिटिकल निमोनिया है। इसके अलावा बच्चे की सांस की नली में सिकुड़न थी। मतलब बच्चे की सांस की नली में सिकुड़न थी। डॉ सुमन ने बताया कि ऐसे में ज्यादातर बच्चे 3 से 4 दिन ही जीवित रह पाते हैं.
दंपती ने डॉक्टर समेत पूरी टीम का जताया आभार
सरकारी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के बेहतर इलाज और स्टाफ नर्सों के साथ-साथ अन्य कर्मचारियों की कड़ी मेहनत के कारण विकेश कुमार और सबिता का नवजात आज इतनी कठिन परिस्थिति में भी ठीक हो गया है. जिसके बाद शनिवार को बच्चों को पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है. इधर, बच्चे को घर ले जाने से पहले नवजात के माता-पिता ने डॉ. सुमन समेत पूरे स्टाफ का आभार जताया और खुशी जाहिर करते हुए घर से निकल गए. इधर, बाल रोग विभाग की प्रमुख डॉ. सुमन ने इस प्रयास के लिए अपने स्टाफ की तारीफ की है और कहा है कि जब ऐसी स्थिति में किसी बच्चे का इलाज चल रहा हो तो बच्चे को बचाना किसी के बस की बात नहीं है. यह पूरी टीम वर्क है। इसलिए उन्होंने अपनी पूरी टीम को इस प्रयास के लिए बधाई देते हुए भविष्य में भी इस तरह के प्रयास करने की मंशा जाहिर की है.
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